
मुजफ्फरनगर। सावन मास की पावन कावड़ यात्रा में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद में एक अनूठी मिसाल देखने को मिली, जब एक मुस्लिम महिला, शबनम (अब सोनम वाल्मीकि), अपने पति पवन वाल्मीकि के साथ हरिद्वार से 40 लीटर गंगाजल की कावड़ लेकर गाजियाबाद की ओर पैदल यात्रा करती नजर आई। इस कावड़ पर शबनम ने अपने सास-ससुर की तस्वीर सजाई, जिनके लिए उन्होंने यह मन्नत मांगी है कि वे शिवरात्रि के दिन भगवान शिव पर जलाभिषेक करने के बाद बचे हुए गंगाजल से अपने सास-ससुर को स्नान कराएंगी। यह दृश्य न केवल धार्मिक सौहार्द का प्रतीक है, बल्कि प्रेम, आस्था और पारिवारिक सम्मान की अनुपम कहानी भी बयां करता है।शबनम ने बताया कि उनकी मुलाकात नौ साल पहले गाजियाबाद के एक अस्पताल में हुई, जहां उनके पति पवन नर्सिंग स्टाफ के रूप में कार्यरत हैं। शबनम ने कहा, “मुझे मेरा भोला पवन बहुत अच्छा लगा, और हमने प्रेम विवाह कर लिया।” इस दंपति के अब दो बच्चे हैं—एक 6 वर्षीय बेटी और एक 4 वर्षीय बेटा। शबनम ने बताया कि हिंदू धर्म में आने के बाद उन्हें उनके सास-ससुर और परिवार से अपार सम्मान और स्नेह मिला। “मेरे सास-ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने मुझे इज्जत दी, रहन-सहन और खान-पान सब कुछ सिखाया। मैं उनके लिए ही यह कावड़ उठा रही हूं। यह मेरी मन्नत है।शबनम और पवन ने 12 जुलाई को हरिद्वार की हर की पौड़ी से 40 लीटर गंगाजल की कावड़ उठाई। यह दंपति प्रतिदिन 10 से 20 किलोमीटर की यात्रा करता है और 22 जुलाई को गाजियाबाद पहुंचने की उम्मीद है। शबनम ने बताया, “मेरे सास-ससुर ने कई सालों से हरिद्वार जाने की इच्छा जताई थी, लेकिन समय की कमी के कारण जा नहीं सके। मैं और मेरे पति उन्हें गंगाजल से स्नान कराना चाहते हैं।” कावड़ यात्रा में शबनम पहले भी शामिल हो चुकी हैं, लेकिन इस बार उनकी मन्नत विशेष है। उन्होंने कहा, “मैं भगवान शिव पर जलाभिषेक करूंगी और फिर अपने सास-ससुर को गंगाजल से स्नान कराऊंगी।”पवन ने अपनी पत्नी की भक्ति और समर्पण की सराहना करते हुए कहा, “वह मेरा दिल जीत चुकी है। हमारी कावड़ का वजन 40 किलो से अधिक है, और हम बिना थके चलते रहते हैं। भोले बाबा की कृपा से कोई परेशानी नहीं है। हमारी मन्नत पूरी होने पर अगले साल और उत्साह के साथ कावड़ लाएंगे।शबनम की यह यात्रा धार्मिक सौहार्द और एकता की मिसाल है। उन्होंने बताया कि वह भले ही ईद न मनाती हों, लेकिन अपनी बहनों के बुलाने पर उनके साथ घूमने जरूर जाती हैं। “मुझे भोले बाबा की कृपा से यहां बुलाया गया है। उनका आशीर्वाद है, इसलिए सब कुछ अच्छा लगता है।” शबनम की यह आस्था और उनके सास-ससुर के प्रति समर्पण न केवल उनके परिवार की एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणादायी संदेश देता है।